हाल फिलहाल कोई भी नई जाति पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की स्थिति में नहीं: राजेश कश्यप
राजेश कश्यप |
‘‘हाल फिलहाल कोई भी जाति अथवा उपजाति पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की स्थिति में नहीं हैं। इसलिए आयोग को किसी भी जाति को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की सिफारिश कदापि नहीं करनी चाहिए। लेकिन वास्तव में जो जातियां आर्थिक रूप से कमजोर हुई हैं, उनकी आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की सरकार को सिफारिश की जा सकती है। इसके लिए पिछड़ों के हकों से खिलवाड़ करने का कोई औचित्य ही नहीं बनता है।’’ ये सुझाव व विचारों से युक्त पत्र हरियाणा कश्यप राजपूत सभा रोहतक के प्रधान राजेश कश्यप ने हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग को भेजा है। उल्लेखनीय है कि आयोग ने 2 अपै्रल तक समाज के विशिष्ट व्यक्तियों, शिक्षाविदों, राजनीतिक और सामाजिक विचारकों से (उप) जातियों को पिछड़ी जाति वर्ग में शामिल करने हेतु विचार एवं सुझाव आमंत्रित किए थे। आयोग के इसी आमंत्रण के तहत श्री कश्यप ने एक पत्र के जरिए आयोग को लिखा है कि अब तक के समीकरणों के अनुसार पिछड़ी जाति में शामिल होने के लिए सिर्फ जाट बिरादरी ने उग्रता दिखाई है और शेष अन्य ब्राहा्रण, बिश्नोई आदि 16 या 17 जातियों ने दबी जुबान से बहती गंगा में हाथ धोते हुए नौकरियों में आरक्षण मांगा है। लेकिन, यह आरक्षण पिछड़ा वर्ग में शामिल करके देने की बजाय, आर्थिक आधार पर मांगा है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि अभी हाल-फिलहाल अधिकतर जातियां स्वयं को आत्मिक तौरपर पिछड़ा वर्ग में शामिल होने योग्य नहीं मानती हैं। इसलिए, पिछड़ा वर्ग में अन्य उप-जातियों को शामिल करने की अभी कोई आवश्यकता नहीं है।
आयोग को लिखे पत्र में सभा के प्रधान राजेश कश्यप ने आगे लिखा है कि जहां तक, जाट बिरादरी के उग्र आन्दोलन का सवाल है तो यह बेहद विडम्बना व दुर्भाग्य का विषय है। क्योंकि, जो जाति बहुमत में होने के साथ-साथ, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक आदि हर स्तर पर अन्य जातियों के तुलनात्मक, बेहद सशक्त और सर्वोच्च स्थान रखती हो, उस जाति को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की माँग या सोच अथवा निर्णय, बिल्कुल अनैतिक, असंवैधानिक और असामाजिक होगा। सर्वविद्यित है कि जाट बिरादरी के नाम पर जो खूनी आन्दोलन चलाया जा रहा है, वह चन्द असामाजिक, स्वार्थी, संकीर्ण, अति महत्वाकांक्षी और स्वयंभू नेता लोगों का एक बहुत बड़ा सुनियोजित षड़यंत्र, दुराग्रही चक्रव्युह और साम्प्रदायिक कुचक्र है। निश्चित तौरपर यह ‘देशद्रोह’ का मामला बनता है।
श्री कश्यप ने आयोग को आगे लिखा है कि जाट समाज के प्रखर बुद्धिजीवी लोग बड़े स्वाभिमान के साथ यह स्वीकार करते हैं कि जाट बिरादरी को पिछड़े वर्ग में न तो शामिल करने की आवश्यकता है और न ही आरक्षण की। क्योंकि बिना आरक्षण ही उन्हें नौकरियों में सबसे ज्यादा फायदा मिलता है। उनकीं नजर में जिन लोगों की अपने परिवार व समाज में कोई पूछ ही नहीं हैं, वे लोग ही अपनी राजनीति को चमकाने के लिए जाट समाज को भावनात्मक-ब्लैकमेल करने वाले दुःसाहसिक कृत्यों में लगे हुए हैं।
सभा के प्रधान राजेश कश्यप ने आयोग को लिखे पत्र में सादर अनुरोध किया है कि आयोग वास्तविकता को मद्देनजर रखते हुए, सच्चाई व संवैधानिक तराजू में मामले को तोलते हुए, हरियाणा सरकार को स्पष्ट सुझाव दें कि अभी हाल फिलहाल किसी भी जाति या उपजाति के ‘पिछड़ा वर्ग’ में शामिल होने की स्थिति या परिस्थिति नजर नहीं आती है। लेकिन, सभी जातियों की नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण की माँग पर सहानुभूतिपूर्वक विचार जरूर किया जाना चाहिए, यह सरकार का नैतिक ही नहीं, संवैधानिक दायित्व भी बनता है। सरकार के मार्गदर्शन व सहयोग के दृष्टिगत आयोग को अपनी रिपोर्ट में प्राप्त तथ्यों, सूचनाओं, समीकरणों, दस्तावेजों और सुझावों के आधार पर एक निष्पक्ष एवं पारदर्शी एजेण्डा अपनी अंतरिम रिपोर्ट में अवश्य शामिल करना चाहिए। श्री कश्यप ने आगे लिखा है कि हाल-फिलहाल, आयोग के समक्ष, समाज को साम्प्रदायिकता के दंश से बचाने, संकीर्ण राजनीतिकों को सबक सिखाने, अति महत्वाकांक्षी बिरादरी के स्वयंभू नेताओं पर अंकुश लगाने और कानून-व्यवस्था को अभिन्न व अभेद्य बनाने का स्वर्णिम व ऐतिहासिक अवसर है।
आयोग को लिखे गए पत्र की मूल कॉपी
आयोग को लिखे गए पत्र की मूल कॉपी |