मुनिराज महर्षि कश्यप के मानस-पुत्र और मरीची ऋषि के महातेजस्वी पुत्र थे। इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि कश्यप की माता का नाम कला था, जो कि कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। महर्षि कश्यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। पौराणिक संदर्भों के अनुसार सृष्टि की रचना करने के लिए ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के दायें अंगूठे से दक्ष प्रजापति हुए। ब्रह्मा जी के अनुनय-विनय पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएँ पैदा कीं। इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ महर्षि कश्यप की पत्नियां बनीं। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का सृजन हुआ और महर्षि कश्यप सृष्टि के सृजक बने। महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने गये हैं। सप्तऋषियों की पुष्टि श्री विष्णु पुराण में इस प्रकार होती है -वसिष्ठ काश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।। (अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं - वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज)। श्रीमद्भागवत के छठे अध्याय के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी साठ कन्याओं में से दस कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, तेरह कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप के साथ, सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ, दो कन्याओं का विवाह भूत के साथ, दो कन्याओं का विवाह अंगीरा के साथ, दो कन्याओं का विवाह कृशाश्व के साथ और शेष चार कन्याओं का विवाह भी कश्यप के साथ ही किया। इस प्रकार महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं। महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किये, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तर में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे - विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। महर्षि कश्यप के पुत्र विस्वान से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। महर्षि कश्यप ने दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरून्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्यकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रह्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई। महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई। रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी की कोख से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किये। ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया। महर्षि कश्यप ने रानी विनता के गर्भ से गरुड़ (भगवान विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा किये। कद्रू की कोख से अनेक नागों का जन्म हुआ। रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए। मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होंने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। महर्षि कश्यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भीक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरंतर धर्मोपदेश करते थे, जिसके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश पालन करते थे। महर्षि कश्यप ने `स्मृति-ग्रंथ' जैसे महान् ग्रंथ की रचना की। उन्हीं की कृपा से राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका।
सोमवार, 21 दिसंबर 2009
सृष्टि के सृजक महर्षि कश्यप \ राजेश कश्यप
मुनिराज महर्षि कश्यप के मानस-पुत्र और मरीची ऋषि के महातेजस्वी पुत्र थे। इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है। महर्षि कश्यप की माता का नाम कला था, जो कि कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। महर्षि कश्यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। पौराणिक संदर्भों के अनुसार सृष्टि की रचना करने के लिए ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा जी प्रकट हुए। ब्रह्मा जी के दायें अंगूठे से दक्ष प्रजापति हुए। ब्रह्मा जी के अनुनय-विनय पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएँ पैदा कीं। इन कन्याओं में से 13 कन्याएँ महर्षि कश्यप की पत्नियां बनीं। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का सृजन हुआ और महर्षि कश्यप सृष्टि के सृजक बने। महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने गये हैं। सप्तऋषियों की पुष्टि श्री विष्णु पुराण में इस प्रकार होती है -वसिष्ठ काश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।। (अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं - वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज)। श्रीमद्भागवत के छठे अध्याय के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी साठ कन्याओं में से दस कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, तेरह कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप के साथ, सत्ताईस कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ, दो कन्याओं का विवाह भूत के साथ, दो कन्याओं का विवाह अंगीरा के साथ, दो कन्याओं का विवाह कृशाश्व के साथ और शेष चार कन्याओं का विवाह भी कश्यप के साथ ही किया। इस प्रकार महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं। महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किये, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तर में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे - विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। महर्षि कश्यप के पुत्र विस्वान से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई। महर्षि कश्यप ने दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरून्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्यकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रह्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई। महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई। रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी की कोख से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने सांप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किये। ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया। महर्षि कश्यप ने रानी विनता के गर्भ से गरुड़ (भगवान विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा किये। कद्रू की कोख से अनेक नागों का जन्म हुआ। रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्मा जी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए। मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होंने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। महर्षि कश्यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भीक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरंतर धर्मोपदेश करते थे, जिसके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश पालन करते थे। महर्षि कश्यप ने `स्मृति-ग्रंथ' जैसे महान् ग्रंथ की रचना की। उन्हीं की कृपा से राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका।
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा का प्रथम कार्यकारिणी - परिचय सम्मलेन संपन्न
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा का प्रथम कार्यकारिणी - परिचय सम्मलेन २० दिसम्बर २००९ को छोटूराम धर्मशाला , रोहतक में जिले के प्रधान राजेश कश्यप की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। सम्मलेन के मुख्य अतिथि प्रदेशाध्यक्ष देशराज कश्यप थे और विशिष्ट अतिथि सरपरस्त बलजीत सिंह मतौरिया एवं चुनाव कमेटी के चेयरमेन सुंदर सिंह कश्यप थे। सम्मलेन में तालियों की भारी गडगडाहट के बीच प्रधान राजेश कश्यप ने अपने जिले की नयी कार्यकारिणी घोषित की। नयी कार्यकारिणी में जिला स्तर पर जय भगवान कश्यप को सचिव, सत्तेवान कश्यप को खजांची , रोहताश कश्यप को वरिष्ठ उप -प्रधान, प्रदीप कश्यप को सह-सचिव, कृष्ण चन्द्र कश्यप को ऑडिटर, अन्नू कश्यप को प्रेस सचिव, सत्तेवान कश्यप-धर्मेन्द्र कश्यप एवं सूरज कश्यप को प्रचार सचिव के रूप में शामिल किया गया।
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
प्रथम कार्यकारिणी बैठक
पूर्ण विश्वाश है की आप सपरिवार स्वस्थ एवं प्रसन्नचित होंगे।
आगे समाचार यह है की
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा , रोहतक की प्रथम कार्यकारिणी बैठक आगामी रविवार, दिनांक २० दिसम्बर , २००९ को छोटूराम धर्मशाला , रोहतक में प्रातः १०.०० बजे आयोजित की जा रही है। इस बैठक के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित होंगे :
१- हरियाणा कश्यप राजपूत सभा , रोहतक की नयी कार्यकारिणी की घोषणा करना।
२- नयी कार्यकारिणी के सदस्यों का आपसी परिचय करवाना।
३- कार्यकारिणी के पदाधिकारियों को 'परिचय - पत्र' प्रदान करना।
४- सभा की आगामी योजनाओं पर विचार विमर्श करना।
५- नए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में भागीदारी पर विचार करना।
मेरे सभी कश्यप बंधुओं ,
उपर्युक्त बैठक में आप सब सादर आमंत्रित हैं। कृपा करके सभा की इस बैठक में समय पर पधारने का कष्ट करें। आशा ही नहीं, बल्कि पूर्ण विश्वाश है की आप इस बैठक में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करेंगे और कश्यप समाज के समग्र उत्थान में अपने अमूल्य सुझाव भी देंगे। इसी आशा एवं विश्वास के साथ .....
आदर सहित,
आपका स्नेहाकांक्षी,
-राजेश कश्यप
प्रधान।
बुधवार, 24 जून 2009
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा , रोहतक के पदाधिकारियों के लिए आवेदन आमंत्रित हैं....
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा , रोहतक के पदाधिकारियों के लिए आवेदन आमंत्रित हैं....
तत्काल अपना नाम व पत्ता मोबाइल नम्बर 9416629889पर लिखवायें ।
पदों का विवरण निम्नलिखित है....
१-वरिष्ठ उपप्रधान
२-सचिव
३-ऑडिटर -
4-प्रेस सचिव -
5-प्रचार सचिव
नोट : हर गांव से एक प्रधान के लिए भी आवेदन भेजें।
-अपने आवेदन निम्नलिखित पते पर ५ दिनों के अंदर अंदर शीघ्रातिशीघ्र भेजें :
राजेश कश्यप (जिला प्रधान )
कश्यप भवन, टीटोली (रोहतक )
हरियाणा-124005
mobile नम्बर : 941662989
अधिक jankari के लिए turant फ़ोन करें या ऐ-mail भेजें। rkk100@rediffmail.com
rajeshtitoli@yahoo.co.in
राजेश कश्यप रोहतक जिले के प्रधान नियुक्त
राजेश कश्यप रोहतक जिले के प्रधान नियुक्त
हरियाणा कश्यप राजपूत सभा के जिला रोहतक का प्रधान युवा समाजसेवी राजेश कश्यप को सर्वसम्मति से चुना गया । रविवार को पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत सभा के मुख्यालय कश्यप भवन, तितोली में जिला कार्यकारिणी का चुनाव हरियाणा प्रदेश चुनाव कमिटी के चेयरमैन सुंदर सिंह कश्यप की अध्यक्षता में संपन हुआ । कश्यप समाज ने काफी विचार-विमर्श के बाद सर्वसम्मति से जिला प्रधान, सचिव एवं कोषाध्यक्ष चुनने की घोषणा कर दी। जिले सिंह कश्यप एवं दरिया सिंह कश्यप ने राजेश कश्यप का नाम प्रधान पद के लिए अनुमोदित किया, जिसे सभी सदस्यों ने तालियों की करतल ध्वनी के बीच अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी। इसके बाद महेंदर सिंह कश्यप व वेद प्रकाश कश्यप ने जय भगवन कश्यप को सचिव और करतार सिंह कश्यप व राय सिंह कश्यप ने सत्यवान कश्यप को कोषाध्यक्ष पद के लिए अनुमोदित किया, जिसे सभी ने सहर्ष स्वीकृत कर लिया।
चुनाव कमिटी के चेयरमैन सुंदर सिंह कश्यप ने जिला रोहतक इकाई के चुने हुए प्रतिनिधियों को बधाइयाँ दी और उन्हें कार्यभार सौंपा । उन्होंने सभा के जिला स्तर एवं ब्लाक स्तर के अन्य अधिकारीयों के चुनाव करने एवं जिला स्तर के समुचित निर्णय लेने के अधिकार सभा के नवनियुक्त प्रधान राजेश कश्यप को प्रदान किए।हरियाणा कश्यप राजपूत सभा के जिला रोहतक के प्रधान चुने जाने पर राजेश कश्यप ने समस्त कश्यप समाज का आभार प्रकट किया और सभी से कश्यप समाज के उत्थान के लिए तन मन धन से अपना सहयोग देने का भी अनुरोध किया । श्री कश्यप ने अपने संबोधन में आगे कहा की जो भी व्यक्ति कश्यप समाज के उत्थान में अपना सक्रिय सहयोग देना चाहता है और जिला स्तर अथवा ब्लाक स्तर के पड़ के योग्य समझता है तो वह एक सप्ताह के अंदर जिला प्रधान को अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। राजेश कश्यप ने आगे कहा की कश्यप सभा की आवश्यक योजनाओं एवं कार्यकर्मों की घोषणा जल्द ही नयी कार्यकारिणी में की जायेगी। इस अवसर पर कश्यप समाज के असंख्य लोग उपसिथत थे।
समस्त कश्यप बंधुओं , बुजुर्गों एवं शुभचिंतकों को सादर अभिवादन और सादर अभिनन्दन !
समस्त कश्यप बंधुओं , बुजुर्गों एवं शुभचिंतकों को सादर अभिवादन और सादर अभिनन्दन !
मैं राजेश कश्यप अपने कश्यप समाज के लिए यह विशेष ब्लोग्स शुरू करते हुए बेहद गर्व महशूस कर रहा हूँ। मेरी हमेश यह कोशिश रहेगी की मैं इस ब्लोग्स के माध्यम से कश्यप समाज से जुड़े हर पहलू एवं मुद्दे को आपके साथ बनता रहूँ। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस ब्लोग्स के माध्यम से समस्त कश्यप समाज को एक नई दिशा मिलेगी और पूरा कश्यप समाज एकजुट होगा।
कश्यप बंधुओं !
मुझे यह भी पूर्ण विश्वास है कि कश्यप समाज के उत्थान के अभियान में आपका स्नेह , सहयोग, आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन मुझे अवश्य मिलेगा। पुन : आप सबका सादर अभिनन्दन।
-राजेश कश्यप
मोबाइल : ९४१६६२९८८९