सोमवार, 23 मई 2011

सृष्टि के महासृजक : महर्षि कश्यप / राजेश कश्यप

24 मई, 2011 जयन्ति विशेष



महर्षि कश्यप जी

हमारे देश की पावन भूमि अनेक ऋषि-मुनियों, साधु-सन्तों और भक्तों की जन्म एवं कर्मभूमि रही है। इस पावन धरा पर भगवान विष्णु भी कई बार स्वयं अपना अवतार ले चुके हैं। इसी पावन धरती पर सप्तऋषि महर्षि कश्यप जी सृष्टि के रचियता भगवान ब्रहा्रा जी के आदेशानुसार सृष्टि की सृजना करने के लिए अवतरित हुए। मुनिराज महर्षि क’यप ब्रहा्रा जी के मानस-पुत्र और मरीची ऋषि के महातेजस्वी पुत्र थे। इन्हें ‘अरिष्टनेमी’ के नाम से भी जाना जाता था। महर्षि कश्यप की माता का नाम कला था, जोकि कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। मुनिराज कश्यप पिंघले हुए सोने जैसे महातेजस्वी थे। उनकी जटाएं अग्नि-ज्वालाएं जैसी थीं। महर्षि क’यप ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते थे। सुर-असुरों के मूल पुरूष मुनिराज कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे पर-ब्रह्म  परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे।

पौराणिक सन्दर्भों के अनुसार सृष्टि की रचना करने के लिए ब्रहा्राण्ड में सर्वप्रथम भगवान ब्रहा्रा जी प्रकट हुए। ब्रहा्रा जी के दाएं अंगूठे से दक्ष प्रजापति हुए। ब्रहा्रा जी के अनुनय-विनय पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्रि के गर्भ से ६० कन्याएं पैदा कीं। इन कन्याओं में से १३ कन्याएं महर्षि कश्यप की पत्नियां बनीं। मुख्यत: इन्ही कन्याओं से सृष्टि का सृजन हुआ और महर्षि कश्यप सृष्टि के सृजक बने। महर्षि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने गए हैं। सप्तऋषियों की पुष्टि श्री विष्णु पुराण में इस प्रकार होती है :-

वसिष्ठ: का’यपो∙यात्रिर्जमदग्निस्सगौतम:।

वि’वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयो∙भवन्।।

(अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं - वसिष्ठ, क’यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र  और भारद्वाज।)

श्रीमद्भागवत के छठे अध्याय के अनुसार दक्ष प्रजापति ने अपनी साठ कन्याओं मंे से दस कन्याओं का विवाह धर्म के साथ, तेरह कन्याओं का विवाह महर्षि कश्यप के साथ, सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ, दो कन्याओं का विवाह भूत के साथ, दो कन्याओं का विवाह अंगीरा के साथ, दो कन्याओं का विवाह कश्यप के साथ और शेष चार कन्याओं का विवाह भी ताक्ष्र्यधारी कश्यप के साथ ही कर दिया। इस प्रकार महर्षि क’यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनि आदि पत्नियां बनीं।

महर्षि कश्यपने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किए, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। श्री विष्णु पुराण के अनुसार :

मन्वन्तरे∙त्र सम्प्राप्ते तथा वैवस्वतेद्विज।

वामन: क’यपाद्विष्णुरदित्यां सम्बभुव ह।।

त्रिमि क्रमैरिमाँल्लोकान्जित्वा येन महात्मना।

पुन्दराय त्रैलोक्यं दत्रं निहत्कण्टकम्।।

(अर्थात्-वैवस्वत मन्वन्तर के प्राप्त होने पर भगवान् विष्णु कश्यप जी द्वारा अदिति के गर्भ से वामन रूप में प्रकट हुए। उन महात्मा वामन जी ने अपनी तीन डगों से सम्पूर्ण लोकों को जीतकर यह निष्कण्टक त्रिलोकी इन्द्र को दे दी थी।)

पौराणिक सन्दर्भो के अनुसार चाक्षुष मन्वन्तर में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जोकि इस प्रकार थे -विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरूण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। महर्षि क’यप के पुत्र विवस्वान् से मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्’ाु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।

महर्षि क’यप ने दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से क’यप के ४९ अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जोकि मरून्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्याकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रहल्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई।

महर्षि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धुम्रके’ा, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि ६१ महान् पुत्रों की प्राप्ति हुई। रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गन्धर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी की कोख से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा  नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए। ताम्रा ने बाज, गीद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।

महर्षि कश्यप ने रानी विनता के गर्भ से गरूड़ (भगवान विष्णु का वाहन) और वरूण (सूर्य का सारथि) पैदा किए। कद्रू की कोख से अनेक नागों का जन्म हुआ। रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतिंगों) का जन्म हुआ। ब्रहा्रा जी की आज्ञा से प्रजापति क’यप ने वै’वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जोकि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।

मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदे’ा देते थे। उन्होने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों न शामिल हों। महर्षि क’यप राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भिक एवं निर्लोभी थे। क’यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश  करते थे, जिनके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश: पालन करते थे। उन्ही की कृपा से ही राजा नरवाहनदत्त चक्रवर्ती राजा की श्रेष्ठ पदवी प्राप्त कर सका।

महर्षि कश्यप अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर श्रेष्ठतम महानुभूतियों में गिने जाते थे। महर्षि कश्यप ने समाज को एक नई दिशा देने के लिए ‘स्मृति-ग्रन्थ’ जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा महर्षि कश्यप ने ‘कश्यप-संहिता’ की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की। ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार ‘कस्पियन सागर’ एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप जी के नाम पर ही हुआ। महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि की सृजना में दिए गए महायोगदान की यशोगाथा हमारे वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों एवं अन्य अनेक धार्मिक साहित्यों में भरी पड़ी है, जिसके कारण उन्हें ‘सृष्टि के महासृजक’ उपाधि से विभूषित किया जाता है। ऐसे महातेजस्वी, महाप्रतापी, महाविभूति, महायोगी, सप्तऋषियों में महाश्रेष्ठ व सृष्टि सृजक महर्षि क’यप जी को कोटि-कोटि प्रणाम। (महर्षि कश्यप जी का फोटो संलग्न है।)

(लेखक हरियाणा कश्यप राजपूत सभा की ‘साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सैल के ‘अध्यक्ष’ हैं।’ इसके  साथ ही  हरियाणा कश्यप राजपूत सभा रोहतक के प्रधान एवं सभा के प्रदेश मीडिया प्रभारी भी हैं. ).




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